-
स्लम लाइफ पर बनी वास्तविक फिल्म स्ट्राइकर
मुख्य कलाकार : आदित्य पंचोली, आर सिद्धार्थ, पद्मप्रिया, अनुपम खेर, अंकुर विकाल, सीमा विश्वास
निर्देशक : चंदन अरोड़ा
तकनीकी टीम : निर्माता- चंदन अरोड़ा, संगीत: सोनू निगम, सुनिधि चौहान, युवान, विशाल भारद्वाज, स्वानंद किरकिरे, संगीत निर्देशक- शैलेंद्र बरवे, अमित त्रिवेदी, विशाल भारद्वाज, सिनेमेटोग्राफी- पी.एस.विनोद।
चंदन अरोड़ा की स्ट्राइकर में प्रेम, अपराध, हिंसा और स्लम की जिंदगी है। सूर्या इस स्लम का युवक है, जो अपने फैसलों और विवेक से अपराध की परिधि पर घूमने और स्वाभाविक मजबूरियों के बावजूद परिस्थितियों के आगे घुटने नहीं टेकता। वह मुंबई की मलिन बस्ती का नायक है। हिंदी फिल्मों में मुंबइया निर्देशकों ने ऐसे चरित्रों से परहेज किया है। मलिन बस्तियों के जीवन में ज्यादातर दुख-तकलीफ और हिंसा-अपराध दिखाने की प्रवृति रही है। स्ट्राइकर इस लिहाज से भी अलग है।
सूर्या मुंबई के मालवणी स्लम का निवासी है। उसका परिवार मुंबई के ंिकसी और इलाके से आकर यहां बसा है। बचपन से अपने भाई की तरह कैरम का शौकीन सूर्या बाद में चैंपियन खेली बन जाता है। कैरम के स्ट्राइकर पर उसकी उंगलियां ऐसी सधी हुई हैं वह अमूमन स्टार्ट टू फिनिश गेम खेलता है। स्थानीय अपराधी सरगना जलील उसका इस्तेमाल करना चाहता है,लेकिन सूर्या उसके प्रलोभन और दबावों में नहीं आता। सूर्या की जाएद से दोस्ती है। सूर्या कमाई के लिए छोटे-मोटे अपराध करने में नहीं हिचकता। दोनों दोस्त एक-दूसरे की मदद किया करते हैं। लगभग 15 सालों की इस कहानी में हम सूर्या के अतीत में भी जाते हैं। परिवार से उसके संबंध आत्मीय और कंसर्न से भरे हैं। बाबरी मस्जिद ढहने के बाद मुंबई में हुए दंगों के दरम्यान मालवणी बेहद संवेदनशील इलाका माना जा रहा था। पुलिस और प्रशासन की निगाह टिकी हुई थी। चूंकि मालवणी में मुसलमानों की तादाद लगभग 90 फीसदी थी, इसलिए आशंका व्यक्त की जा रही थी कि हिंदू दंगों के शिकार हो सकते हैं। तनाव के इस माहौल में सूर्या जैसे चरित्रों ने मालवणी को महफूज रखा। फिल्म में जलील दंगा भड़काने के नापाक इरादे से अपनी जुगत में लगा है। तभी नाटकीय तरीके से सूर्या का आगमन होता है और मुंबई भारी तबाही से बच जाती है। हम ऐसे किरदारों के किस्सों से वाकिफ नहीं हो पाते। स्ट्राइकर मालवणी की सच्ची घटनाओं पर बनी काल्पनिक फिल्म है।
चंदन अरोड़ा ने फिल्म को रियलिस्ट अंदाज में शूट किया है। उन्होंने स्लम की जिंदगी को उसकी धड़कनों के साथ कैमरे में कैद किया है। नौवें दशक की मुंबई के परिवेश को गढ़ने में चंदन ने छोटे डिटेल पर भी ध्यान दिया है। स्ट्राइकर में परिवेश और चरित्रों का सुंदर संतुलन है। फिल्म के किरदार थोपे हुए नहीं लगते। सिद्धार्थ ने स्क्रिप्ट की जरूरत के मुताबिक अपने लुक को उम्र के अनुसार बदला है। यह फिल्म उनके अभिनय की बानगी है। रंग दे बसंती हम उनकी प्रतिभा की झलक भर देख पाए थे। उनके साथ जाएद की भूमिका में अंकुर विकल ने बराबर का साथ दिया है। अंकुर में नसीरूद्दीन शाह जैसी स्वाभाविकता और खुलापन है। आदित्य पंचोली बदले अंदाज में प्रभावशाली लगे हैं। उन्होंने जलील के किरदार को संयत तरीके से निभाया है। हिंदी फिल्मों में पहली बार आ रही पद्मप्रिया अच्छी लगी हैं। उनके किरदार को और बढ़ाया जा सकता था, लेकिन निर्देशक का लक्ष्य रोमांस से अधिक रिलेशनशिप रहा है।
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर और गीत-संगीत उल्लेखनीय है। चंदन ने अनेक संगीतकारों की मदद ली है। स्वानंद किरकिरे और विशाल भारद्वाज ने अपने संगीत से फिल्म के मूल भाव को गहराई दी है। फिल्म के बैकग्राउंड स्कोर से दृश्यों के प्रभाव बढ़े हैं।
Posting Permissions
- You may not post new threads
- You may not post replies
- You may not post attachments
- You may not edit your posts
-
Forum Rules
Bookmarks