-
रोमांटिक फिल्म है इश्किया
विशाल भारद्वाज के साथ काम करते हुए अभिषेक चौबे ने निर्देशन की बारीकियां सीखीं और फिर इश्किया का निर्देशन किया। उत्तर भारत से मुंबई पहुंचे युवा अभिषेक की इश्किया में उत्तर प्रदेश का माहौल है। बातचीत अभिषेक से..
पहले अपने बारे में बताएंगे?
मैं उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले का हूं। पिताजी बैंक में थे। उनके साथ बिहार, झारखंड और हैदराबाद में स्कूलों की पढ़ाई की। फिर दिल्ली के हिंदू कॉलेज में एडमिशन लेने के साथ ही तय किया कि फिल्मों में निर्देशन करना है। मुंबई मैं 1998 में आ गया था। पहले फिल्म शरारत में सहायक रहा। फिर विशाल भारद्वाज के साथ जुड़ गया।
विशाल भारद्वाज से कैसे जुड़े और यह जुड़ाव कितना उपयोगी रहा?
वे मकड़ी बना रहे थे। उन दिनों उन्हें एक सहायक की जरूरत थी और मुझे काम चाहिए था। पहली मुलाकात में ही हमारी छन गई। उनके साथ-साथ मेरा विकास हुआ। मकबूल के समय उन्होंने मुझे लेखन में शामिल किया। ब्लू अंब्रेला का पहला ड्राफ्ट तैयार करने का मौका दिया। ब्लू अंब्रेला से कमीने तक उनके साथ मैं लिखता रहा। फिर मैंने इश्किया की स्क्रिप्ट लिखी।
इश्किया के बारे में क्या कहेंगे?
मेरे पास इश्किया के किरदार थे और एक ढीली कहानी थी। विशाल ने सुनने के बाद काम करने को कहा। हमने पहला ड्राफ्ट साथ में तैयार किया। उन्होंने इसमें संगीत दिया। मुझमें विश्वास जाहिर किया और मेरे लिए निर्माता की खोज की। इस फिल्म में विशाल की छाप लोगों को मिलेगी।
यह पूर्वी उत्तर प्रदेश की फिल्म लग रही है?
मेरा मन था कि मेरी पहली फिल्म उत्तर प्रदेश के मेरे इलाके की हो। मैं वहां की संस्कृति और समाज को जानता हूं। उस दुनिया की मेरी समझ है। मेरे लिए वह आसान भी था। मैं पूर्वी उत्तर प्रदेश की सोशल रियलिटी नहीं दिखा रहा हूं। मेरे कैरेक्टर उस बैकड्राप और कल्चर में हैं। आजकल उस इलाके के बारे में फिल्में नहीं बनतीं। आप देखें कि यूपी-बिहार के दर्शकों के लिए वहां के किरदारों पर फिल्में नहीं बन पा रही हैं। इस तथ्य से मुझे परेशानी होती है। मैं यह भी स्पष्ट कर दूं कि उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि पर यह मेरी आखिरी फिल्म नहीं होगी।
किरदार और कहानी के बारे में बात करें, तो ये सब जमीनी और परिचित लग रहे हैं?
बिल्कुल.., यह खालू जान, बब्बन और कृष्णा की कहानी है। बब्बन और उनके खालू छोटे चोर और उठाईगीर हैं। दोनों मध्यप्रदेश के भगोड़े हैं। वे गोरखपुर के पास एक गांव में विधवा कृष्णा के घर में छिपे हैं। यह रोमांटिक फिल्म है। इसका नाम ही इश्किया है।
विद्या को इस रोल के लिए तैयार करना आसान था?
उन्होंने स्क्रिप्ट सुनते ही हां कर दी थी। इस रोल को निभाने में उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई। हां, गाली बोलने में थोड़ी झिझक हुई, लेकिन किरदार को समझने के बाद दिक्कत नहीं हुई। उन्होंने इस रोल को संजीदगी के साथ जिया है।
..धोने से पहले मेरे गांव में तमंचा चलाना सिखाते हैं जैसे संवाद क्या महज चौंकाने के लिए हैं?
नहीं, खाली जगह पर आप बरतन लिख दें, तो संवाद फीका हो जाएगा। फिल्म में गालियों का इस्तेमाल बेवजह नहीं किया जाता। विशाल की ओमकारा और कमीने में भी ऐसे संवाद थे। ऐसा होने से फिल्म ए सर्टिफिकेट पाती है।
Posting Permissions
- You may not post new threads
- You may not post replies
- You may not post attachments
- You may not edit your posts
-
Forum Rules
Bookmarks